यह निर्णय इसलिए किया गया है ताकि जमीन की अनुपलब्धता के कारण कोई भी परियोजना बीच में ही ना अटक जाए.
रेलवे ने पहली बार निर्णय किया है कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी हुए बिना, नई रेल लाइन बिछाने की कोई भी परियोजना शुरू नहीं की जाएगी. यह निर्णय इसलिए किया गया है ताकि जमीन की अनुपलब्धता के कारण कोई भी परियोजना बीच में ही ना अटक जाए. एक नई नीति के अन्तर्गत राष्ट्रीय परिवहन रेलवे ने भूमि अधिग्रहण पूरा होने या एक निर्धारित समय सीमा के भीतर रेलवे को जमीन देने के लिए राज्य सरकार से गारंटी का लिखित आश्वासन प्राप्त नहीं होने पर एक तरह से निविदाएं जारी करने या किसी नई परियोजना पर काम शुरू करने पर रोक लगा रखी है.
नई नीति में कहा गया है, ‘‘बोर्ड (रेलवे) ने भूमि अधिग्रहण पूरा होने के बाद ही किसी नई लाइन की परियोजना को लेकर टेंडर जारी करने या काम शुरू करने का निर्णय लिया है.’’ इस समय किसी परियोजना को शुरू करने के लिए केवल 70 प्रतिशत भूमि अधिग्रहण की जरूरत है जिसके चलते भूमि की अनुपलब्धता होने या निर्धारित जमीन के मुकदमेबाजी में फंसे होने के कारण अक्सर परियोजना रुक जाती है या उसमें देर हो जाती है.
अधिकारियों ने बताया कि वर्तमान नीति में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि अधिग्रहीत लाइन का रेखीय (लीनियर) होना जरूरी है. ऐसे में जब काम शुरू होता है तब समस्याएं शुरू होती हैं और आंशिक काम शुरू हो जाता है लेकिन अगले खंड के लिए भूमि उपलब्ध नहीं होती है.
एक अधिकारी ने बताया, ‘‘इस नई नीति के अनुसार, अगर राज्य सरकार नई रेल लाइन चाहती है तो इसके लिए उसे रेलवे को भूमि उपलब्ध करानी होगी. अगर भूमि उपलब्ध नहीं होती तो हमें निवेश में नुकसान उठाना पड़ता है.’’ अधिकारियों ने बताया कि हर साल ऐसे विलंब के कारण लागत में करीब 10-15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो जाती है.