अगस्त में लोकसभा में पेश हुआ फाइनेंसियल रेज़ोल्यूशन एंड डिपॉज़िट इंश्योरेंस बिल, संसद की संयुक्त समिति को संसद के शीतकालीन सत्र में 22 दिसंबर तक अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया.
अगर कोई बैंक डूब रहा हो, दिवालिया हो रहा हो तो आपके जो पैसे वहां जमा हैं उनकी क्या गारंटी है, बैंक कितने पैसे लौटाने के लिए बाध्य हैं? इस बारे में सरकार एक बिल ला रही है जिसे लेकर काफी चर्चा हो रही है.
दिवालिया हो रही किसी बैंकिग या फाइनेंसियल कंपनी के हालात से निबटने के लिए बीते अगस्त में लोकसभा में पेश हुए फाइनेंसियल रेज़ोल्यूशन एंड डिपॉज़िट इंश्योरेंस बिल को लेकर चर्चा गर्म है. इसके मुताबिक बैंकिंग सेक्टर की मॉनिटरिंग के लिए एक रेज़ोल्यूशन कॉर्पोरेशन का प्रस्ताव है जो डूबते बैंक के खाताधारकों के पैसे की इंश्योरेंस के मापदंड तय करेगा.
ज़्यादा विवाद बिल के उस प्रस्ताव को लेकर है जिसमें कहा गया है कि खाताधारकों के जमा पैसे का इस्तेमाल बैंक को उबारने में किया जा सकता है. डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन भी खत्म किया जाना है. इसके तहत खाताधारकों को एक लाख रुपये तक लौटाने की गारंटी मिली है.
विवाद बिल के चैप्टर 4 सेक्शन 2 को लेकर भी है. इसके मुताबिक रेज़ोल्यूशन कॉरपोरेशन रेग्यूलेटर से सलाह-मश्विरे के बाद यह तय करेगा कि दिवालिया बैंक के जमाकर्ता को उसके जमा पैसे के बदले कितनी रकम दी जाए. वह तय करेगा कि जमाकर्ता को कोई खास रकम मिले या फिर खाते में जमा पूरा पैसा.
हालांकि सरकार ने बिल में बदलाव के संकेत दिए हैं. वित्तमंत्री ने बुधवार को ट्वीट कर कहा, “फाइनेंशियल रेज़्यूलेशन एंड डिपॉज़िट इंश्योरेंस बिल संसद की स्थायी समिति के अधीन है. सरकार की मंशा वित्तीय संस्थानों और खाताधारकों के हितों को सुरक्षित रखना है. सरकार इसको लेकर प्रतिबद्ध है.”
फिर गुरुवार को वित्त मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, “मीडिया में बिल में बेल-इन के प्रावधानों को लेकर गलतफहमी फैलाई जा रही है. संसद में जो बिल पेश किया गया है उससे खाताधारकों की मौजूदा सुरक्षा में कोई बदलाव नहीं किया गया है. बिल में पारदर्शी तरीके से खाताधारकों के लिए सुरक्षा के नए प्रावधान शामिल किए गए हैं.”
अर्थशास्त्री अरुण कुमार कहते हैं कि बिल में उन प्रावधानों को बदलना ज़रूरी होगा जिससे संशय की स्थित उत्पन्न हुई है. उनके मुताबिक लोग जब पैसे बैंक खातों में जमा करते हैं तो उसकी सुरक्षा बेहद महत्वपूर्ण है.
फिलहाल बिल संसद की संयुक्त समिति के अधीन है, जिसे 15 दिसंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के पहले हफ्ते के आखिरी दिन, यानी 22 दिसंबर तक अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है. अगर इस बिल के प्रारूप पर अगले दो हफ्ते में राजनीतिक सहमति नहीं बनती है तो समिति लोकसभा स्पीकर से और समय मांग सकती है.