अब यूनिटेक के जेल में बंद प्रबंध निदेशक संजय चन्द्रा को कंपनी की संपत्तियां बेचकर 750 करोड़ रुपए की व्यवस्था करने के लिये बातचीत शुरू करने का अवसर प्रदान करेगा.
उच्चतम न्यायालय ने संकटग्रस्त यूनिटेक लि का प्रबंधन केन्द्र को अपने हाथ में लेने की अनुमति देने संबंधी राष्ट्रीय कंपनी लॉ न्यायाधिकरण के आदेश पर बुधवार (13 दिसंबर) को रोक लगा दी. इससे पहले, अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने स्वीकार किया कि सरकार को न्यायाधिकरण में नहीं जाना चाहिए था. राष्ट्रीय कंपनी लॉ न्यायाधिकरण ने करीब बीस हजार मकान खरीदारों के हितों की रक्षा के इरादे से केन्द्र के अनुरोध को स्वीकार करते हुये यूनिटेक के सभी आठ निदेशकों को कुप्रबंधन और धन हड़पने के आरोप में निलंबित करने के साथ ही केन्द्र को इसके बोर्ड में दस सदस्य नामित करने के लिये अधिकृत कर दिया था.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने स्वीकार किया कि जब घर खरीदारों का धन लौटाने में कथित रूप से असफल रहने के कारण इस कंपनी के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में मामला लंबित था तो केन्द्र को न्यायाधिकरण में नहीं जाना चाहिए था. इसके बाद पीठ ने न्यायाधिकरण का आदेश पर रोक लगा दी. पीठ ने न्यायालय के प्रति ‘निष्पक्ष’ रहने के लिये वेणुगोपाल की सराहना की और कहा कि उनके नजरिये ने पीठ और घर खरीदारों का ‘बहुत अधिक बोझ’ और ‘समय’ बचा लिया.
न्यायाधिकरण के आदेश पर रोक अब यूनिटेक के जेल में बंद प्रबंध निदेशक संजय चन्द्रा को कंपनी की संपत्तियां बेचकर 750 करोड़ रुपए की व्यवस्था करने के लिये बातचीत शुरू करने का अवसर प्रदान करेगा. शीर्ष अदालत के 30 अक्तूबर के आदेशानुसार यह धनराशि परेशान घर खरीदारों का धन लौटाने के लिये दिसंबंर के अंत तक न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा करनी है.
न्यायालय ने न्यायाधिकरण में याचिका दायर करने के केन्द्र के कदम पर मंगलवार (12 दिसंबर) को अप्रसन्नता व्यक्त करते हुये कहा था कि उसके आदेश पर रोक लगाने से न्याय होगा. शीर्ष अदालत ने मंगलवार को केन्द्र से पू्छा था कि यूनिटेक के निदेशकों को निलंबित करने और उनके स्थान पर सरकारी व्यक्तियों को नामित करने के लिये न्यायाधिकरण में जाने से पहले उसकी अनुमति क्यों नहीं ली.
रियल इस्टेट फर्म और इसके प्रवर्तकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और रंजीत कुमार ने कहा था कि शीर्ष अदालत ने चन्द्रा को 750 करोड़ रुपए की व्यवस्था करने के लिये जेल से ही बातचीत करने के लिये समय प्रदान किया था परंतु इस बीच केन्द्र न्यायाधिकरण चला गया. रोहतगी का यह भी आरोप था कि न्यायाधिकरण ने फर्म और उसके निदेशकों को कोई नोटिस जारी नहीं किया ओर अंतरिम आदेश पारित कर दिया जो एक तरह से अंतिम आदेश ही है और केन्द्र को फर्म का प्रबंध अपने हाथ में लेने की अनुमति दे दी.