नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि अभी कर अनुपालन 40 से 43 प्रतिशत है. इसे बढ़ाकर 90 प्रतिशत किए जाने की जरूरत है.
माल एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था अगले 18 महीने में स्थिर हो जाएगी. नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने शुक्रवार (22 दिसंबर) को यह बात कही. कुमार ने यहां भारतीय सनदी लेखा संस्थान :आईसीएआई: के दक्षिणी क्षेत्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘आप हमें समय दें. आप देखेंगे कि 18 माह में जीएसटी व्यवस्था स्थिर हो जाएगी. मुझे लगता है कि यहीं चार्टर्ड अकाउंटेंट की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है.’’ कुमार ने कहा, ‘‘खेद की बात है कि आप में से कुछ लोग निवेशकों की मदद के बजाय उन्हें जीएसटी का डर दिखा रहे हैं. मुझे लगता है कि यह अनुचित है.’’
कुमार ने कहा कि यदि सीए सहयोग नहीं करेंगे तो भारत संगठित और असंगठित क्षेत्र के दोहरीकरण को समाप्त नहीं कर पाएगा. यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है. उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था के औपचारिक दायरे में आने से कर अनुपालन को मजबूती मिलेगी. अभी कर अनुपालन 40 से 43 प्रतिशत है. इसे बढ़ाकर 90 प्रतिशत किए जाने की जरूरत है. सीए की भूमिका इसीलिए महत्वपूर्ण हो जाती है.
कुमार ने कहा कि जीएसटी के तहत कर स्लैब को तर्कसंगत बनाकर तीन स्लैब किया जाएगा, जो कि अभी पांच है. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में जीएसटी के तीन दर 0, 12 और 28 प्रतिशत हो सकती है. हालांकि, उन्होंने कहा कि जीएसटी के तहत केवल एक कर दर के बारे में सोचना व्यावहारिक नहीं है. यूरोपीय संघ के सभी देशों का जो आकार है वह भारत का अकेले का है. कुमार ने कहा कि यदि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है तो यह एक बड़ा कदम होगा. इस बारे में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हाल में राज्यसभा में भी कहा है.
वहीं दूसरी ओर उद्योग मंडल एसोचैम का कहना है कि पेट्रोलियम उत्पादों को माल व सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाने को लेकर राज्यों के साथ सहमति बनना काफी मुश्किल है क्योंकि केंद्र व राज्य, दोनों ही राजस्व के मामले में इस क्षेत्र पर कुछ ज्यादा ही निर्भर हैं. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हाल में राज्यसभा में कहा था कि केंद्र ने पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने का समर्थन किया है, लेकिन उन्होंने कहा कि यह काम राज्यों के साथ सहमति बनने पर ही हो सकता है.
एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने यहां कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया जाना हमेशा से ही अपेक्षित रहा है ताकि ईंधन मूल्य शृंखला की दक्षता बढ़े और ग्राहकों पर कर बोझ कम हो. रावत ने कहा, वास्तविक बात की जाए तो केंद्र व राज्य दोनों ही अपने राजस्व संग्रहण के लिए पेट्रोलियम क्षेत्र पर कुछ ज्यादा ही निर्भर हैं. कुल मिलाकर वे पेट्रोल व डीजल पर 100- 130 प्रतिशत से अधिक कर लगाते हैं.