इस्पात क्षेत्र के पीएसयू संयुक्त उद्यमों को अंतिम रूप दें: बीरेंद्र सिंह

इस्पात क्षेत्र के पीएसयू संयुक्त उद्यमों को अंतिम रूप दें: बीरेंद्र सिंह

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केंद्रीय इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह ने सोमवार को इस्पात मंत्रालय के अधीनस्थ सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (पीएसयू) के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक (सीएमडी) को समयबद्ध ढंग से समस्त एसपीवी (विशेष उद्देश्य वाहन) और संयुक्त उद्यमों को अंतिम रूप देने एवं उनके कार्यान्वयन का निर्देश दिया

केंद्रीय इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह ने सोमवार को इस्पात मंत्रालय के अधीनस्थ सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (पीएसयू) के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक (सीएमडी) को समयबद्ध ढंग से समस्त एसपीवी (विशेष उद्देश्य वाहन) और संयुक्त उद्यमों को अंतिम रूप देने एवं उनके कार्यान्वयन का निर्देश दिया. मंत्री ने उन सभी इकाइयों की क्षमता वृद्धि के कार्य भी तय समयसीमा में पूरे करने का निर्देश दिया, जिनका आधुनिकीकरण पहले ही हो चुका है. इस्पात मंत्री ने कहा, “प्रत्येक संयंत्र एवं इकाई में उत्कृष्टता की पूरी गुंजाइश है, जिसकी पुनरावृत्ति करने की जरूरत है. इसके साथ ही समूचे इस्पात संयंत्र को उत्कृष्टता की बानगी के रूप में तब्दील कर दिया जाना चाहिए. यह केवल तभी संभव हो पाएगा, जब संयंत्र अपने उत्पादन एवं गुणवत्ता में अंतर्राष्ट्रीय मानक हासिल करने का लक्ष्य रखेगा.”

सिंह ने कहा, “सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात संयंत्रों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए इस्पात मंत्रालय अंतर्राष्ट्रीय मानक बनाम समग्र प्रदर्शन के आधार पर आकलन करने के बाद एक ‘उत्कृष्ट संयंत्र’ की घोषणा करेगा. वह खुद संयंत्र एवं इकाई स्तर पर प्रदर्शन की समीक्षा करेंगे और मंत्रालय इनके उत्पादन संबंधी प्रदर्शन पर करीबी नजर रखेगा.”
उन्होंने विशेष जोर देते हुए कहा कि किसी संयंत्र अथवा इकाई की स्थापना में लगने वाले ज्यादा समय एवं लागत वृद्धि की जवाबदेही अब से एक मानक के रूप में तय की जाएगी. मंत्री ने कहा कि इस तरह की समीक्षा बैठकों में किसी भी वास्तविक कठिनाई एवं बाधा पर अवश्य ही प्रकाश डालना चाहिए, ताकि उस दिशा में तेजी से आवश्यक कदम उठाए जा सकें.

सिंह ने हर कंपनी में बोर्ड स्तर पर आवश्यक सामंजस्य एवं टीमवर्क की अहमियत को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि समन्वय के अभाव, दूसरों पर हावी होने की आदत, समूहवाद, उदासीनता और बोर्ड स्तर पर सूक्ष्म दृष्टि से न केवल अल्प अवधि में कंपनी पर अत्यंत प्रतिकूल असर पड़ता है, बल्कि इस वजह से दीर्घकालिक हानिकारक नतीजे भी सामने आते हैं.

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