फरवरी 2016 में एक साल के लिए सीमा शुल्क, डंपिंग रोधी शुल्क और कुछ उत्पादों पर एमआईपी लगाया गया.
सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की मदद से अप्रैल-दिसंबर 2017 के दौरान इस्पात निर्यात 52.9 प्रतिशत बढ़कर 76 लाख टन हो गया है. संसद में सोमवार को पेश आर्थिक समीक्षा 2017-18 में यह जानकारी दी गई है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में आर्थिक समीक्षा पेश की. इसमें कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की धीमी गति और इस्पात उत्पादन की अधिक क्षमता के साथ ही भारत को 2014-15 की शुरुआत से ही चीन, दक्षिण कोरिया और यूक्रेन जैसे देशों से सस्ते इस्पात के बढ़ते आयात से जूझना पड़ा है.
आर्थिक समीक्षा 2017-18 में कहा गया, “सस्ते इस्पात के आयात ने घरेलू उत्पादकों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला. इस समस्या के समाधान के लिए फरवरी 2016 में एक साल की अवधि के लिए सीमा शुल्क, डंपिंग रोधी शुल्क और कुछ उत्पादों पर न्यूनतम आयात मूल्य (एमआईपी) लगाया गया.” इन उपायों ने स्थानीय उत्पादकों की मदद की और फरवरी 2016 से मार्च 2017 तक निर्यात में सुधार देखा गया। हालांकि, निर्यात में फिर से गिरावट आ रही है.
76.06 लाख टन रहा निर्यात
समीक्षा दस्तावेज में कहा गया, “जून 2017 के बाद इस्पात की कीमतों में वैश्विक रुझानों और सरकार द्वारा किए गए उपायों से अप्रैल-दिसंबर 2017 में इस्पात निर्यात 52.9 प्रतिशत बढ़ा जबकि आयात में केवल 10.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई.” संयुक्त संयंत्र समिति (जेपीसी) के अनुसार, अप्रैल-दिसंबर 2017 के दौरान तैयार इस्पात का निर्यात 52.9 प्रतिशत बढ़कर 76.06 लाख टन हो गया है. पिछले साल इसी अवधि में निर्यात 49.75 लाख टन था.
सरकार ने फरवरी 2017 में विभिन्न इस्पात उत्पादों पर डंपिंग रोधी शुल्क और प्रतिपूर्ति कर को अधिसूचित किया. इसी समय चीन के इस्पात उत्पादन में कटौती किए जाने से इस्पात की अतंरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतें बढ़ीं. इसमें कहा गया है कि क्षेत्र को समर्थन और बढ़ावा देने के लिए सरकार मई 2017 में नई इस्पात नीति पेश की.