विश्व बैंक में पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने कहा कि तेल कीमतों में नरमी के बीच भारत की आर्थिक वृद्धि वापस नौ प्रतिशत की राह पर लौटनी चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने सितंबर तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रहने पर निराशा जताई है.
विश्व बैंक में पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने रविवार (3 दिसंबर) को कहा कि तेल कीमतों में नरमी के बीच भारत की आर्थिक वृद्धि वापस नौ प्रतिशत की राह पर लौटनी चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने सितंबर तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रहने पर निराशा जताई है. उन्होंने एक ट्वीट में लिखा है, ‘भारत की वृद्धि दर इस समय 6.3 प्रतिशत है. यह 2005-2008 से यह 9.5 प्रतिशत पर पहुंची थी.’ संप्रग सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे बासु ने कहा है, ‘अब तेल कीमतें नीची हैं, वृद्धि दर वापस नौ प्रतिशत से उंची होनी चाहिए. इस भारी नरमी का उचित उपचार जरूरी है.’ उल्लेखनीय है कि जीडीपी वृद्धि दर 2017-18 की दूसरी तिमाही में 6.3 प्रतिशत रही.
वहीं दूसरी ओर मुख्य अर्थशास्त्री व नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया को उम्मीद है कि मौजूदा वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत से अधिक रहेगी. उन्होंने कहा कि बीते तीन साल में व्यापक आर्थिक संकेतक मोटे तौर पर स्थिर रहे हैं जहां चालू खाते का घाटा लगभग एक प्रतिशत पर बनी हुई है और मुद्रास्फीति में नरमी है. एक साक्षात्कार में पनगढ़िया ने कहा, ‘एक जुलाई 2017 से माल व सेवा कर जीएसटी के कार्यान्वयन के अनुमान के चलते अप्रैल जून तिमाही में आपूर्ति में कुछ बाधा हुई और त्रैमासिक वृद्धि दर घटकर 5.7 प्रतिशत रह गई.’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन हम सुधार होता देखेंगे और 2017-18 के दैरा वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत या इससे उंची रहेगी.’
India’s growth rate is now 6.3%. It had reached a rate of 9.5% from 2005 to 2008. Now with oil prices so low, the growth should have been back at over 9%. This massive slowdown needs to be properly diagnosed.
— Kaushik Basu (@kaushikcbasu) December 3, 2017
पनगढ़िया ने इस बारे में गोल्डमैन साक्स की एक रपट का हवाला दिया कि 2018-19 में वृद्धि दर बढ़कर 8 प्रतिशत होने की पूरी संभावना है. क्या सरकार अर्थव्यवस्था को बल देने के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में ढील दे सकती है यह पूछे जाने पर पनगढ़िया ने कहा, ‘व्यक्तिगत तौर मैं नहीं मानता है कि वित्त मंत्री व प्रधानमंत्री राजकोषीय सुदृढ़ीकरण को हासिल करने की दिशा में अपनी कड़ी मेहनत को इस चरण में ‘बेकार’ होने देंगे.’
उल्लेखनीय है कि देश की आर्थिक वृद्धि दर में पिछली पांच तिमाहियों से जारी गिरावट का रुख थम गया. आर्थिक वृद्धि दर तीन साल के न्यूनतम स्तर से बाहर निकलते हुए चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 6.3 प्रतिशत पर पहुंच गई. विनिर्माण क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ने तथा कंपनियों के नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था जीएसटी के साथ सामंजस्य बिठाने से जीडीपी की चाल तेज हुई है. वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत रही थी जो वृद्धि का तीन साल का सबसे कम आंकड़ा रहा. नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद यह सबसे कम वृद्धि दर थी.