Davos में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना भाषण हिंदी में दिया. अगर आप हिंदी भाषी हैं, तो आपको इस पर गर्व महसूस करना चाहिए.
2016 में World Economic Forum ने एक Power Language Index जारी किया था. इस Index में वो भाषाएं शामिल की गई थीं, जो 2050 तक दुनिया की सबसे शक्तिशाली भाषाएं होंगी. और इन भाषाओं में हिंदी को भी Top 10 भाषाओं में शामिल किया गया था. और आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी World Economic Forum के मंच से दुनिया को हिंदी में संबोधित किया और हिंदी की Branding की. वैसे तो पूरी दुनिया में अंग्रेज़ी को, बिज़नेस और पैसे की भाषा माना जाता है. और जहां दुनिया भर के आर्थिक विशेषज्ञ और बड़ी बड़ी कंपनियों के CEOs मौजूद हों, तो ऐसा मान लिया जाता है कि बातचीत अंग्रेज़ी में ही होगी. लेकिन Davos में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना भाषण हिंदी में दिया. अगर आप हिंदी भाषी हैं, तो आपको इस पर गर्व महसूस करना चाहिए.
Switzerland के Davos में आज से World Economic Forum की सालाना बैठक शुरू हो गई है. ये बैठक आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण के साथ शुरू हुई. करीब 20 वर्षों के बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री Davos गया है. इससे पहले 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री HD देवेगौड़ा Davos गए थे. लेकिन पिछले 20 वर्षों में बहुत कुछ बदल चुका है. दुनिया में भारत की स्थिति बदल चुकी है. दुनिया भारत की तरफ एक नये नज़रिये के साथ देखती है. यही वजह है कि दुनिया की इस सबसे बड़ी आर्थिक पंचायत की शुरुआत करने का मौका भारत के प्रधानमंत्री को दिया गया.
वैसे तो इस बैठक का उद्देश्य ये है कि अपने देश में ज्यादा से ज्यादा निवेश को आमंत्रित किया जाए. और दुनिया का हर नेता यही करने की कोशिश करेगा. लेकिन आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरी दुनिया को भारत के दर्शनशास्त्र का मंत्र दिया. उन्होंने तेज़ी से आगे बढ़ती दुनिया में Data के महत्व की बात की, लेकिन अर्थव्यवस्था की आंकड़ेबाज़ी में उलझने के बजाए.. उन्होंने बहुत सरल भाषा में … दुनिया को ये समझा दिया कि भारत का DNA क्या है. आप ये भी कह सकते हैं कि आंकड़ों से खेलने वाले लोगों को प्रधानमंत्री मोदी ने भारत का दर्शन-शास्त्र समझाया. उन्होंने दुनिया की कंपनियों को निवेश के लिए तो बुलाया, लेकिन बहुत ही Philosophical यानी आध्यात्मिक अंदाज़ में.
इस मंच से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गांधी, भगवद गीता, रबिन्द्रनाथ टैगोर और उपनिषदों की बात की. और भारत की इसी ताकत से दुनिया का साक्षात्कार करवाया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया की बड़ी बड़ी कंपनियों को बताया कि अगर उन्हें खुशहाली के साथ शांति चाहिए, स्वास्थ्य के साथ समग्रता चाहिए, दौलत के साथ तंदुरुस्ती भी चाहिए तो उन्हें भारत आना चाहिए.
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया को अपना Vision बता रहे थे. और ऐसा नहीं है कि वो सिर्फ आर्थिक मुद्दों पर आध्यात्मिक बातें कर रहे थे. बल्कि उन्होंने दुनिया के बड़े और चुनौतीपूर्ण मुद्दों की बात की. प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का ज़िक्र भी किया. सबसे पहले आप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हिंदी में दिए गए इस ऐतिहासिक भाषण के कुछ हिस्से सुनिए. इसके बाद हम आपको Davos लेकर चलेंगे, जहां मौसम ने बड़े बड़े नेताओं की हवा खराब की हुई है.
जब कोई कार्यक्रम शुरू होता है… तो उसकी शुरुआत उदघाटन भाषण से होती है. उदघाटन भाषण का मतलब होता है किसी कार्यक्रम के एजेंडे की नींव रखना. ये बहुत बड़ी बात है कि इस बार दुनिया की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी पंचायत की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण से हुई है.. और ये बैठक हिंदी से शुरू हुई.
इससे ये पता चलता है कि जिस तरह दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए Davos का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है उसी तरह Davos में भारत का स्थान भी बहुत महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने भाषण में दुनिया को भारत की अर्थव्यवस्था का विराट रूप दिखाया है. इसमें भारत की अर्थनीति के साथ साथ भारत के दर्शनशास्त्र का मिश्रण मौजूद है.
Davos… पूरी दुनिया में World Economic Forum की सालाना बैठक के लिए प्रसिद्ध है. यहां होने वाले फैसलों का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है लेकिन इस बार दुनिया भर में Davos की चर्चा उसके मौसम की वजह से भी हो रही है.
Davos… को Global Village कहा जाता है. ये जगह अपनी खूबसूरती और आबो हवा के लिए बहुत मशहूर है. Davos यूरोप की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला… Alps पर स्थित है. यूरोप के बड़े-बड़े साहित्यकार यहां छुट्टियां मनाना पसंद करते हैं. एक ज़माने में यूरोप में जब किसी को Tubercolosis यानी TB हो जाता था.. तो कई बार डॉक्टर उसे कुछ दिन Davos में बिताने की सलाह देते थे. हालांकि बाद में दावोस की ये छवि बदल गई.. और धीरे धीरे ये पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था का केंद्र बन गया.
इस बार Davos का मौसम बहुत बदला हुआ है. Davos में बहुत ज़बरदस्त बर्फबारी हुई है. पिछले 6 दिनों में Davos में 159 सेंटीमीटर की बर्फबारी हुई है. पिछले 24 घंटे में Davos में 47 सेंटीमीटर की बर्फबारी हुई है. Switzerland में बर्फबारी और बर्फीले तूफानों का अध्ययन करने वाली संस्थाओं का कहना है कि करीब 20 वर्षों के बाद Davos में इतनी बर्फबारी हुई है. कल शाम से वहां बर्फबारी बहुत तेज़ हो गई थी. दुनिया के ज़्यादातर बड़े-बड़े देशों के नेता और प्रतिनिधिमंडल कल ही Davos पहुंचे हैं. लेकिन इतनी ज़्यादा बर्फबारी की वजह से लोगों को यात्रा करने में बहुत परेशानी हुई. वहां सड़कों पर इतनी ज़्यादा बर्फ है कि गाड़ी चलाना मुश्किल है जबकि Skating करना आसान है. हालात ऐसे हैं कि कुछ जगहों पर सिर्फ 12 किलोमीटर का सफर तय करने में ही… 2 घंटे का समय लग रहा है. Davos में आने वाले प्रतिनिधि आमतौर पर कारों का इस्तेमाल करते थे लेकिन बर्फबारी की वजह से.. ये लोग Train से सफर कर रहे हैं.
World Economic Forum की बैठक के लिए Switzerland में Davos के आसपास के शहरों में एक हज़ार Private Jets की Landing होनी थी लेकिन खराब मौसम की वजह से इसमें बहुत परेशानी हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय समय के मुताबिक कल दोपहर 1 बजकर 10 मिनट पर Switzerland के Zurich पहुंचे थे. इसके बाद वो सड़क मार्ग से Davos पहुंचे. प्रधानमंत्री मोदी को Helicopter से Davos जाना था.
Zurich और Davos के बीच की दूरी 147 किलोमीटर है. Helicopter से इस सफर में लगभग 30 मिनट का वक्त लगता है. लेकिन खराब मौसम की वजह से उन्हें मजबूरी में सड़क मार्ग का इस्तेमाल करना पड़ा. सड़क के ज़रिए Zurich से Davos जाने में आम तौर पर करीब 2 घंटे लगते हैं. लेकिन सड़कों पर बर्फ जमी होने की वजह से अब Zurich से Davos के बीच की दूरी तय करने में करीब दो गुना वक्त लग रहा है. इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी को Zurich से Davos पहुंचने में 4 घंटे का वक्त लगा. Davos में मशीनों की मदद से सड़कों पर जमी बर्फ को हटाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन ये काम इतना आसान नहीं है. फिलहाल स्थिति ये है कि बर्फीली सड़कों पर चलते हुए दुनिया के बड़े बड़े उद्योगपतियों और CEOs के पैर फिसल रहे हैं.
दुनिया में Davos की अपनी एक अलग पहचान है. लेकिन इस मौके पर आपको Switzerland के बारे में भी पता होना चाहिए. भारत का क्षेत्रफल.. Switzerland के मुकाबले 80 गुना ज़्यादा है. Switzerland एक Landlocked देश है इसका मतलब होता है वो जगह जो चारों तरफ से ज़मीन से घिरी हुई हो. ऐसे देशों का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये होता है कि उनके पास कोई बंदरगाह नहीं होता. उन्हें अगर किसी और देश में Business करना हो तो दूसरे देशों से रास्ता मांगना पड़ता है. लेकिन इतनी मुश्किलों के बाद भी Switzerland की अर्थव्यवस्था… दुनिया की सबसे अच्छी अर्थव्यवस्थाओं में से एक मानी जाती है.
Switzerland की मुद्रा Swiss Franc दुनिया की सबसे स्थिर और मजबूत मुद्राओं में से एक है. दुनिया की करीब 2 हज़ार जानी मानी कंपनियों के Headquarters, Switzerland में हैं. वर्ष 2015 के Global Innovation Index और 2017 की Global Competitiveness Report में Switzerland को दुनिया की बेहतरीन अर्थव्यवस्था बताया गया था.
सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि Switzerland के पास अरब देशों की तरह तेल के भंडार नहीं है. Switzerland का 60 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा पहाड़ी है. यहां खेती के लायक ज़मीन भी कम है. लेकिन इसके बावजूद दुनिया की अर्थव्यवस्था में Switzerland का सम्मान है. Switzerland की आबादी करीब 84 लाख है लेकिन यहां के लोग पूरी तरह अपने देश के प्रति समर्पित हैं. और यही इस देश की तरक्की का मूलमंत्र है.
अगर आप दुनिया के नक्शे को देखें तो Switzerland…… France, Germany और Italy का पड़ोसी है. ये तीनों ही देश पहले और दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा ले चुके हैं. यूरोप के इन देशों में बहुत खून खराबा हुआ. लेकिन Switzerland ने इन युद्धों से दूरी बनाकर रखी. जब पूरी दुनिया में खून बहाया जा रहा था.. तब Switzerland… दुनिया के घावों पर मरहम लगा रहा था.
Switzerland के Geneva में पैदा हुए Henry Dunant ने दुनिया भर में Red Cross Movement को शुरू किया था. दुनिया में जहां कहीं भी युद्ध होता है Red Cross के लोग मानवता के नाते मदद के लिए पहुंचते हैं. वर्ष 1907 के Geneva Convention के तहत.. ऐसे नियम बनाए गए ताकि युद्धबंदियों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाए. और युद्ध में आम लोगों को निशाना ना बनाया जाए. Switzerland की शांतिपूर्ण नीतियां अपने आप में उसकी बड़ी उपलब्धि हैं.
20 साल एक बहुत लंबा वक़्त होता है.. 20 साल में ज़माना बदल जाता है. 1997 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री HD देवेगौड़ा World Economic Forum की बैठक में हिस्सा लेने के लिए Davos गये थे.. 1997 का भारत कुछ और था और 2018 का भारत कुछ और है. 1997 में भारत का GDP.. 25 लाख करोड़ रुपये था . जबकि अभी भारत का GDP करीब 151 लाख 84 हज़ार करोड़ रुपये का है. 1997 में विदेशी निवेश सिर्फ 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स था और अब भारत का विदेशी निवेश करीब 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स का हो चुका है. 1997 में 22 जनवरी को सेंसेक्स 3 हज़ार 427 के स्तर पर था, जबकि आज सेंसेक्स 36 हज़ार के स्तर को पार कर चुका है.